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इस चिंगारी को एक बार सुलग जाने दो..

Meri Kavita
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इस चिंगारी को एक बार सुलग जाने दो . .

इस चिंगारी को एक बार सुलग जाने दो ।
.
 
जो बंद रही,
इतने दिनों तक,
अंधकार की कोठरियों मे ।
उस तिल तिल जलती ज्योति को,
इस बार उजियारी फैला जाने दो ॥
.
जो रूह,
उनकी हैवानीयत सह,
आज तक कराहती रही ।
उस रूह को तन से जुदा कर के,
हैवानो से भिड़ जाने दो ॥
.
वो चिंगारी,
जो नस नस में,
गर्म लहू बन बहती रही,
उस गर्म लहू को आज हिया से
लावा बनके फूट जाने दो ॥
.
जो जीवन,
अब तक शून्य रहा,
सांसो की अवलम तारों से ।
उन उखड़ी सांसो की तारों को,
अंतर्मन से जुड़ जाने दो ॥
 
कर उद्विग्न,
ले दीपक को कर मे,
जग मे उजीयारी फैला जाने दो ।
खत्म करे जो तम का अंधेरा,
उस चिंगारी को ,
एक बार, सुलग जाने दो ॥
.
समाप्त
अतुल सिंह

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